Women empowerment essay pdf in Hindi (नारी सशक्तिकरण: दशा एवं दिशा निबंध Pdf Download)

Women empowerment essay pdf in Hindi नारी सशक्तिकरण: दशा एवं दिशा; वर्तमान समय में घर-बाहर दोनों जगह भारतीय नारी की भूमिका महत्त्वपूर्ण हुई है। परिवार, जो कि समाज की प्रारंभिक इकाई होता है, में नारी की केंद्रीय भूमिका होती है। वह पूरे परिवार को तो संभालती ही है, प्रथम गुरु के रूप में बच्चों को अच्छे संस्कार भी देती है, जो कि भविष्य में देश के कर्णधार बनकर राष्ट्रनिर्माण में अपना योगदान देते हैं। घर से बाहर भी नारी की भूमिका कमतर नहीं है। उसने अंतरिक्ष की उड़ान भर कर पुरुषों के दंभ को तोड़ा है। अलग-अलग भूमिकाओं में वह समाज व राष्ट्र के प्रति अपने अवदान से अपनी उपादेयता को सुनिश्चित कर रही है तथापि आज भी वह विभिन्न स्तरों पर भेदभाव और असमानता की शिकार है जबकि उसे सशक्त बनाने के अनेकानेक प्रयास जारी हैं। वैसे भी सशक्तिकरण एक सतत प्रक्रिया है और इसकी कोई अंतिम सीमा नहीं है। फिर भी अब तक की प्रक्रिया के पारदर्शी व संतोषजनक परिणाम परिलक्षित न होना इस विषय से जुड़ा एक स्याह पक्ष है।

वैदिककालीन नारी की स्थिति

वैदिककालीन भारतीय समाज में नारी की स्थिति अत्यंत उन्नत व सम्मानजनक थी। तब वह न तो लैंगिक पक्षपात की शिकार थी और न ही उनके साथ किसी प्रकार का भेदभाव किया जाता था। प्रायः जीवन के हर क्षेत्र में नारी को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त थे। वैदिककाल की अदिति, लोपामुद्रा, गार्गी, मैत्रेयी, घोषा और अपाला जैसी विदुषी महिलाओं ने असाधारण ख्याति अर्जित की। तत्कालीन भारतीय समाज में महिलाओं की तेजस्विता के अनेक दृष्टांत प्राचीन भारतीय इतिहास का हिस्सा बन कर आज भी जीवत हैं। जिस वैदिककालीन भारतीय समाज में नारियों ने अपनी तेजस्विता और प्रतिमा के उच्च प्रतिमान स्थापित किए हों, उसे सशक्त करने की आवश्यकता क्यों पड़ी? विषय के संदर्भ में यह प्रश्न विशेष रूप से विचारणीय है।

मध्यकालीन और ब्रिटिशकालीन नारी की स्थिति

वस्तुतः वैदिककाल के बाद से महिलाओं की स्थिति में गिरावट आनी शुरू हुई जो कि मध्यकाल तक अपने चरम पर जा पहुंची। इसे हम एक तरह का सांस्कृतिक क्षरण भी मान सकते हैं। मध्यकाल में तो महिलाओं की स्थिति अत्यंत निम्नतर हो गई। इसके लिए कुछ तत्कालीन परिस्थितियां भी मुख्य रूप से उत्तरदायी थीं। मध्यकाल में हुए विदेशी आक्रमणों ने हमें दोहरी क्षति पहुंचाई यह हमला हमारी सरहदों के साथ-साथ हमारी संस्कृति पर भी हुआ। हमारे मान-सम्मान पर भी हुआ। विदेशी आक्रांताओं ने नारी अस्मिता को भी निशाना बनाया। फलस्वरूप हमारी संस्कृति और समाज संक्रमित हुए। महिलाओं की स्थिति बदतर हुई और इसी काल में बाल विवाह, बालिका वध, सती प्रथा, पर्दा प्रथा जैसी अनेक कुरीतियां अस्तित्व में आईं जिन्होंने महिलाओं की स्थिति को दयनीय बना दिया। यह दौर महिलाओं को वर्जनाओं में कैद करने का था। उन्हें घर की देहरी के भीतर कर दिया गया। फलतः शिक्षा सहित जीवन के अन्य क्षेत्रों में वह उल्लेखनीय प्रगति नहीं कर पाई। वक्त गुजर जाता है, मगर वक्त के घाव नहीं भरते हैं। मध्यकाल के बाद ब्रिटिशकाल आ गया, किंतु महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं आया। इसका प्रमुख कारण यह था कि अंग्रेजों का मकसद भारत में हुकूमत करना था, न कि समाज में सुधार लाना अथवा नारी की स्थिति को उन्नतशील बनाना। हां, इतना जरूर हुआ कि पराधीनता के उस दौर में स्वाधीनता आंदोलन के नेताओं तथा समाज सुधारकों के प्रयासों से नारी चेतना का विकास हुआ, जो कि प्रायः मध्ययुगीन प्रभावों के कारण सुप्त पड़ चुकी थी। यही यह समय था जब भारतीय नारी ने दृढ़ संकल्प शक्ति के साथ घर की दहलीज को लांघा और स्वाधीनता आंदोलन में उल्लेखनीय योगदान दिया। समाज सुधारकों की पहल पर महिलाओं से जुडी कुप्रथाओं के खिलाफ कानून बनाने की प्रक्रिया भी इसी दौर में शुरू हुई। इसमें बाल विवाह की रोकथाम के लिए बने ‘शारदा एक्ट’ का उल्लेख हम एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं।

स्वाधीनता के बाद नारी की स्थिति

यह सच है कि स्वाधीनता आंदोलन के दौरान नारी में एक नई चेतना आई और उसने घर की दहलीज को लांघा, किंतु इस वर्ग में मुख्यतः वही नारियां थीं जिनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि या तो राजनीतिक थी, अथवा जिन्हें स्वाधीनता आंदोलन के नेताओं व समाज सुधारक का सान्निध्य प्राप्त था। सामान्य वर्ग की नारी अभी भी उपेक्षित थी और उसकी स्थिति में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ था। यही कारण है कि देश की आजादी के बाद भारत के नवनिर्माण हेतु नारी सशक्तिकरण की आवश्यकता पड़ी। जब देश आजाद हुआ था तब शिक्षा, अधिकार, हक, सहभागिता, निर्णयन, जागरूकता, सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक आदि स्तरों पर भारतीय नारी पिछड़ी हुई थी। और एक हद तक दमन, शोषण, भेदभाव और असमानता की शिकार थी। उसे समाज में दोयम दर्जा प्राप्त था। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर जहां भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में महिलाओं एवं पुरुषों को राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में समान अधिकार और अवसर प्रदान किए गए. वहीं अनुच्छेद 16 के जरिए रोजगार के समान अवसर भी प्रदान किए गए। महिलाओं को शोषण, भेदभाव एवं दमन से बचाने के लिए विधिक संरक्षण प्रदान किया गया तथा उन्हें साक्षर बनाने के लिए सहशिक्षा के साथ-साथ लड़कियों के लिए पृथक विद्यालयों की व्यवस्था भी शासन द्वारा शुरू की गई।

इसमें कोई दो राय नहीं कि आजादी के बाद भारतीय नारी की स्थिति में सुधार आना शुरू हुआ। जिस समय देश आजाद हुआ था, उस समय देश में महिलाओं का साक्षरता प्रतिशत मात्र 8.86 था जबकि वर्ष 2011 की जनगणना के अंतिम आंकड़ों के अनुसार आज देश की महिलाओं का साक्षरता प्रतिशत 64.6 है और ये बढ़-चढ़कर राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दे रही हैं। आज सेना से लेकर कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं बचा है जहां महिलाओं ने अपनी उपलब्धियों व सफलता के परचम न गाड़े हों। विज्ञान के क्षेत्र में भी उसकी उपलब्धियां मुखर हैं। ‘अग्नि’ मिसाइल के सफल प्रक्षेपण के लिए महिला वैज्ञानिक टेसी थामस का नाम न सिर्फ बहुत सम्मान से लिया जाता है, बल्कि उन्हें ‘अग्निपुत्री’ का खिताब भी मिल चुका है।

नारी सशक्तिकरण के लिए सरकारी प्रयास

सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए निरंतर कदम आगे बढ़ाए जा रहे हैं। इस क्रम में महिला सशक्तिकरण हेतु राष्ट्रीय मिशन को बेहद महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है। 8 मार्च, 2010 को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर देश की तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल द्वारा महिला सशक्तिकरण हेतु राष्ट्रीय मिशन (National Mission for Empowerment of Women- NMEW) का शुभारंभ किया गया जो कि महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक और विधिक सशक्तिकरण हेतु विकासात्मक लक्ष्यों की रिक्तियों की पहचान के साथ समुचित संस्थागत रूपरेखा तैयार करने में सहायक साबित हो रहा है। महिलाओं से जुड़ी दहेज सहित अन्य कुरीतियों के विरुद्ध कानून बनाकर उसे विधिक संरक्षण प्रदान करने के प्रयास किए गए। पंचायती राजव्यवस्था में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के उद्देश्य से जहां पहले उन्हें 1/3 स्थानों पर आरक्षण दिया गया, वहीं पंचायती राजव्यवस्था के 50 वर्ष पूरे होने पर महिलाओं के लिए पंचायतों एवं शहरी स्थानीय निकायों में आरक्षण बढ़ाकर 50% करने का निर्णय लिया गया। काम की गारंटी के अभियान के रूप में शुरू किए गए मनरेगा के तहत भी महिलाओं का विशेष ध्यान रखा गया और आज इसके तहत काम प्राप्त महिलाओं का प्रतिशत 50 है। सरकार की ‘सबला’ तथा ‘इंदिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। भारत का ‘महिला एवं बाल विकास मंत्रालय’ जहां महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए कटिबद्ध है, वहीं महिलाओं की समस्या के समाधान हेतु ‘महिला आयोग की भी स्थापना की जा चुकी है। महिला प्रताड़ना से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए जहां जनवरी, 2013 में पश्चिम बंगाल के मालदा में पूर्ण महिला न्यायालय की शुरुआत की गई, वहीं इस सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए मार्च, 2013 में मुंबई के काला घोड़ा सत्र न्यायालय में पूर्ण महिला न्यायालय की स्थापना की गई जिसमें सभी कर्मचारी व न्यायाधीश महिलाएं ही हैं। न्यायालय की स्थापना का मुख्य उद्देश्य यौन अपराधों से जुड़े मामलों की सुनवाई के दौरान महिलाओं को होने वाली परेशानी एवं अपमान से बचाना है।

वर्तमान परिदृश्य

यह कहना असंगत न होगा कि सरकारी व संवैधानिक स्तर पर महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने और उन्हें सशक्त बनाने के भरपूर प्रयास किए गए, तथापि इस परिप्रेक्ष्य में यह प्रश्न कम महत्त्वपूर्ण नहीं है कि इन सारे प्रयासों के बावजूद भारतीय नारी कितनी सशक्त हो पाई? वस्तुतः नारी सशक्तिकरण की यह यात्रा अभी लंबी है, क्योंकि समाज में व्याप्त लिंगभेद के समूल नाश हेतु समाज को अपने नजरिए में बदलाव लाना आवश्यक है। इसके बगैर महिला सशक्तिकरण के सारे प्रयास सतही सिद्ध हो सकते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़े बताते हैं कि 2011 की तुलना में 2012 में महिलाओं के खिलाफ अपराध में 6.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। ये आंकड़े जहां महिलाओं की स्थिति पर चिंता प्रकट करने वाले हैं, वहीं इस बात की ओर भी इशारा करते हैं कि महिला सशक्तिकरण की प्रक्रिया में किन्हीं स्तरों पर कुछ चूक अवश्य हो रही है। महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध हमारे समाज पर एक कलंक हैं और इनके खिलाफ कानून बनाना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उन कानूनों का ईमानदारी से पालन और क्रियान्वयन भी जरूरी है। इसलिए जब तक सामाजिक स्तर पर सोच में बदलाव नहीं होगा, महिलाएं न तो अपने अस्तित्व को लेकर खुद को सुरक्षित महसूस कर सकती हैं और न ही सशक्त।

निष्कर्ष

वस्तुतः नारी सशक्तिकरण की इस प्रक्रिया में समाज, सरकार और संविधान तीनों की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। हालांकि सरकारी व संवैधानिक प्रयासों से महिलाएं पहले की अपेक्षा अधिक सशक्त, सक्षम व साक्षर हुई हैं तथापि उन्हें सशक्त व सक्षम बनाने की यह यात्रा अभी लंबी है। इसके लिए आवश्यक है कि महिलाएं स्वयं आत्मनिर्भर बनें। उन्हें यह विश्वास होना चाहिए कि वह समाज के निर्माण और विकास में किसी भी प्रकार से कमजोर नहीं हैं। आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता ही नारी सशक्तिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण बिंदु है। इस दिशा में शिक्षा सबसे ज्यादा कारगर हो सकती है। शिक्षित महिलाएं ही न सिर्फ अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होंगी बल्कि समाज में व्याप्त हर प्रकार की विषमताओं को भी दूर कर सकेंगी। इन्हीं सब बातों के ध्यान में रखकर कहा जा सकता है कि नारी सशक्तिकरण की यह यात्रा तभी अपने मुकाम तक पहुंचेगी जब समाज को महिलाओं के प्रति अपने नजरिए में बदलाव लाएगा। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर हम आज के इस युग को एक ‘स्वर्णिम युग’ कह सकते हैं।

नारी सशक्तिकरण: दशा एवं दिशा निबंध Pdf Download

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